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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी




लांछन मुंशी प्रेम चंद

जुगनू उसी वक्त मिसेज टंडन के घर पहुँची, उसके पेट में बुलबुले उठ रहे थे; पर मिसेज टंडन सो गयी थीं। वहाँ से निराश होकर उसने कई दूसरे घरों की कुंडी खटखटाई; पर कोई द्वार न खुला और दुखिया को सारी रात इसी तरह काटनी पड़ी, मानो कोई रोता हुआ बच्चा गोद में हो। प्रात:काल वह आश्रम में जा कूदी।
कोई आधा घंटे में मिसेज टंडन भी आयीं। उन्हें देखकर उसने मुँह फेर लिया।
मिसेज टंडन ने पूछा- रात क्या तुम मेरे घर आयी थीं? इस वक्त मुझसे महाराज ने कहा।
जुगनू ने विरक्त भाव से कहा- प्यासा ही तो कुएँ के पास जाता है। कुआँ थोड़े ही प्यासे के पास आता है। मुझे आग में झोंककर आप दूर हट गयीं। भगवान ने मेरी रक्षा की, नहीं कल जान ही गयी थी।
मिसेज टंडन ने उत्सुकता से कहा- क्या, हुआ क्या, कुछ कहो तो? मुझे तुमने जगा क्यों न लिया? तुम तो जानती हो, मेरी आदत सबेरे सो जाने की है।
'महाराज ने घर में घुसने ही न दिया। जगा कैसे लेती? आपको इतना तो सोचना चाहिए था, कि वह वहाँ गयी है, तो आती होगी? घड़ी भर बाद ही सोतीं, तो क्या बिगड़ जाता; पर आपको किसी की क्या परवाह !'
'तो क्या हुआ, मिस खुरशेद मारने दौड़ीं?'
'वह नहीं मारने दौड़ीं, उनका वह खसम है, वह मारने दौड़ा। लाल आँखें निकाले आया और मुझसे कहा, निकल जा। जब तक मैं निकलूँ, तब तक हंटर खींचकर दौड़ ही तो पड़ा। मैं सिर पर पाँव रखकर न भागती तो चमड़ा उधोड़ डालता। और वह राँड बैठी तमाशा देखती रही। दोनों में पहले से सधी-बदी थी। ऐसी कुलटाओं का मुँह देखना पाप है। बेसवा भी इतनी निर्लज्ज न होगी।'
जरा देर में और देवियाँ आ पहुँचीं। यह वृत्तांत सुनने के लिए सभी उत्सुक हो रही थीं। जुगनू की कैंची अविश्रांत रूप से चलती रही। महिलाओं को इस वृत्तांत में इतना आनंद आ रहा था कि कुछ न पूछो। एक-एक बात को खोद-खोदकर पूछती थीं। घर के काम-धंधे भूल गये, खाने-पीने की सुधि भी न रही; और एक बार सुनकर उनकी तृप्ति न होती थी, बार-बार वही कथा नये आनंद से सुनती थीं।
मिसेज टंडन ने अंत में कहा- हमें आश्रम में ऐसी महिलाओं को लाना अनुचित है। आप लोग इस प्रश्न पर विचार करें।
मिसेज पांडया ने समर्थन किया- हम आश्रम को आदर्श से गिराना नहीं चाहते। मैं तो कहती हूँ, ऐसी औरत किसी संस्था की प्रिंसिपल बनने के योग्य नहीं।
मिसेज बाँगड़ा ने फरमाया- जुगनूबाई ने ठीक कहा था, ऐसी औरत का मुँह देखना भी पाप है। उससे साफ कह देना चाहिए, आप यहाँ तशरीफ न लावें।
अभी यह खिचड़ी पक रही थी कि आश्रम के सामने एक मोटर आकर रुकी। महिलाओं ने सिर उठा-उठाकर देखा, गाड़ी में मिस खुरशेद और विलियम किंग बैठे हुए थे।
जुगनू ने मुँह फैलाकर हाथ से इशारा किया, वही लौंडा है। महिलाओं का संपूर्ण समूह चिक के सामने आने के लिए विकल हो गया।
मिस खुरशेद ने मोटर से उतरकर हुड बंद कर दिया और आश्रम के द्वार की ओर चलीं। महिलाएँ भाग-भागकर अपनी-अपनी जगह आ बैठीं।
मिस खुरशेद ने कमरे में कदम रक्खा। किसी ने स्वागत न किया। मिस खुरशेद ने जुगनू की ओर नि:संकोच आँखों से देखकर मुस्कराते हुए कहा- कहिए बाईजी, रात आपको चोट तो नहीं आयी?
जुगनू ने बहुतेरी दीदा-दिलेर स्त्रियाँ देखी थीं; पर इस ढिठाई ने उसे चकित कर दिया। चोर हाथ में चोरी का माल लिये, साह को ललकार रहा था।
जुगनू ने ऐंठकर कहा- जी न भरा हो, तो अब पिटवा दो। सामने ही तो है।
खुरशेद- वह इस वक्त तुमसे अपना अपराध क्षमा कराने आये हैं। रात वह नशे में थे।
जुगनू ने मिसेज टंडन की ओर देखकर कहा- और आप भी तो कुछ कम नशे में नहीं थीं।
खुरशेद ने व्यंग्य समझकर कहा- मैंने आज तक कभी नहीं पी, मुझ पर झूठा इलजाम मत लगाओ।
जुगनू ने लाठी मारी- शराब से भी बड़ी नशे की चीज है कोई; वह उसी का नशा होगा। उन महाशय को परदे में क्यों ढक दिया। देवियाँ भी तो उनकी सूरत देखतीं।
मिस खुरशेद ने शरारत की- सूरत तो उनकी लाख-दो-लाख में एक है।
मिसेज टंडन ने आशंकित होकर कहा- नहीं, उन्हें यहाँ लाने की जरूरत नहीं ! आश्रम को हम बदनाम नहीं करना चाहते।
मिस खुरशेद ने आग्रह किया- मुआमले को साफ करने के लिए उनका आप लोगों के सामने आना जरूरी है। एकतरफा फैसला आप क्यों करती हैं?
मिसेज टंडन ने टालने के लिए कहा- यहाँ कोई मुकदमा थोड़े ही पेश है !
मिस खुरशेद- वाह ! मेरी इज्जत में बट्टा लगा जा रहा है, और आप कहती हैं, कोई मुकदमा नहीं है? मिस्टर किंग आयेंगे और आपको उनका बयान सुनना होगा।
मिसेज टंडन को छोड़कर और सभी महिलाएँ किंग को देखने के लिए उत्सुक थीं। किसी ने विरोध न किया।
खुरशेद ने द्वार पर आकर ऊँची आवाज से कहा- तुम जरा यहाँ चले आओ !
हुड खुला और मिस लीलावती रेशमी साड़ी पहने मुस्कराती हुई निकल आईं।
आश्रम में सन्नाटा छा गया। देवियाँ विस्मित आँखो से लीलावती को देखने लगीं।
जुगनू ने आँखें चमकाकर कहा- उन्हें कहाँ छिपा दिया आपने?
खुरशेद- छूमंतर से उड़ गये। जाकर गाड़ी देख लो।
जुगनू लपककर गाड़ी के पास गयी और खूब देख-भालकर मुँह लटकाये हुए लौटी।
मिस खुरशेद ने पूछा- क्या हुआ, मिला कोई?
जुगनू- मैं यह तिरिया-चरित्तर क्या जानूँ। (लीलावती को गौर से देखकर) और मरदों को साड़ी पहनाकर आँखो में धूल झोंक रही हो। यही तो हैं, वह रात वाले साहब !
खुरशेद- खूब पहचानती हो?
जुगनू- हाँ-हाँ, क्या अंधी हूँ?
मिसेज टंडन- क्या पागलों-सी बातें करती हो जुगनू, यह तो डाक्टर लीलावती हैं।
जुगनू- (उँगली चमकाकर) चलिए-चलिए, लीलावती हैं। साड़ी पहनकर औरत बनते लाज भी नहीं आती ! तुम रात को इनके घर नहीं थे?
लीलावती ने विनोद-भाव से कहा- मैं कब इनकार कर रही हूँ। इस वक्त लीलावती हूँ। रात को विलियम किंग बन जाती हूँ। इसमें बात ही क्या है !
देवियों को अब यथार्थ की लालिमा दिखाई दी। चारों तरफ कहकहे पड़ने लगे। कोई तालियाँ बजाती थीं, कोई डाक्टर लीलावती की गरदन से लिपट जाती थीं; कोई मिस खुरशेद की पीठ पर थपकियाँ देती थीं। कई मिनट तक हू-हक मचता रहा। जुगनू का मुँह उस लालिमा में बिलकुल जरा-सा निकल आया। जबान बंद हो गयी। ऐसा चरका उसने कभी न खाया था। इतनी जलील कभी न हुई थी।
मिसेज मेहरा ने डाँट बताई- अब बोलो दाई, लगी मुँह में कालिख कि नहीं?
मिसेज बाँगड़ा- इसी तरह सबको बदनाम करती है।
लीलावती- आप लोग भी तो जो यह कहती है, उस पर विश्वास कर लेती हैं।
इस हरबोंग में जुगनू को किसी ने जाते न देखा। अपने सिर पर यह तूफान उठते देखकर उसे चुपके से सरक जाने में ही अपनी कुशल मालूम हुई। पीछे के द्वार से निकली और गलियों-गलियों भागी।
मिस खुरशेद ने कहा- जरा उससे पूछो; मेरे पीछे क्यों पड़ गयी थी?
मिसेज टंडन ने पुकारा, पर जुगनू कहाँ ! तलाश होने लगी। जुगनू गायब !
उस दिन से शहर में फिर किसी ने जुगनू की सूरत नहीं देखी। आश्रम के इतिहास में यह मुआमला आज भी उल्लेख और मनोरंजन का विषय बना हुआ है।

  

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